कहीं रुकना नहीं.

रात अंधेरी सूनी और डरावनी रास्ते का भी कुछ पता नहीं

आगे जाना कहां है यह भी पता नहीं

जमाने से दूर मैं कहीं अकेला खड़ा मंजिल का भी पता नहीं

मगर अकेला चल पड़ा अगर कुछ पता है तो बस इतना की,

कहीं रुकना नहीं.

जब सफर की शुरुआत हुई ठोकर भी खाई चोट भी लगी दर्द भी हुआ खूब रोया

अच्छे लोग भी मिले कुछ बुरे भी कहीं सम्मान मिला तो कहीं अपमान भी

किसी ने गाली दिया तो किसी ने दुआ भी 

जब तक लोगों के साथ रहा उम्मीदों के सहारे रहा

उम्मीदों के सहारे रहा इसलिए गिले शिकवे भी रहा

पता नहीं सफर में मैंने कितनी दूरी तय कर लिया है 

अकेलापन से एकांत को महसूस कर लिया है

अब ना किसी से शिकवा है ना कोई शिकायत

इस यात्रा ने मुझे मुझसे मिलाया है 

खुद से मिलकर यह जाना 

ना कुछ हो रहा था, ना कुछ हो रहा है, 

सिर्फ भावनाओं और प्रतिक्रियाओं का खेल चल रहा है.

आगे कहां तक रास्ता है, या है भी या नहीं, पता नहीं

यह रास्ता मुझे कहां ले जाएगी, पता नहीं

इस यात्रा का अंत कैसा होगा, यह भी पता नहीं

कुछ पता है तो बस इतना की,

कहीं रुकना नहीं.

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